गिरनार जी
जैनों की शान

दिल्ली से गिरनार जी 1500 किमी, 101 दिनों की यात्रा

दिल्ली से गिरनार जी तक की यात्रा एक ऐतिहासिक और धार्मिक अनुभव है, जो लगभग 1500 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह यात्रा न केवल शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण है, बल्कि आत्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। 101 दिनों की यह यात्रा श्रद्धा, समर्पण और साधना का प्रतीक मानी जाती है। यात्रियों को गिरनार जी की पर्वतों पर चढ़ाई करनी होती है, जो कि कठिन और थका देने वाली होती है। इस यात्रा में व्यक्ति को अपने शरीर और आत्मा को समर्पित करना होता है, और यह समय व्यक्ति की आध्यात्मिकता को गहरा करने का अवसर प्रदान करता है। रास्ते में आने वाली कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ भी इस यात्रा को और अधिक पवित्र बना देती हैं।

यात्रा का अनुभव और जैन संस्कृति

गिरनार जी की यात्रा के दौरान, यात्रा करने वाले व्यक्तियों को जैन संस्कृति और दर्शन का गहरा अनुभव होता है। जैन धर्म की सरलता, अहिंसा, और त्याग की शिक्षा यात्रा के हर पल में महसूस होती है। गिरनार जी में स्थित जैन मंदिरों और तीर्थ स्थलों पर जाकर भक्त अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यात्रा के दौरान जैन संस्कृति के अनुयायी आपस में बहुत ही सादगी से रहते हैं और एक दूसरे के साथ सहयोग और समर्थन करते हैं। वहां के धार्मिक अनुष्ठान, भोजन की विधियाँ और समाज का आचार-व्यवहार, सभी कुछ जैन धर्म की गहरी सिख पर आधारित होते हैं, जो एक साधारण, शांत और अहिंसक जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।

जैन समुदाय की सरलता

जैन समुदाय की विशेषता उसकी सरलता और विनम्रता में निहित है। जैन समाज में हर व्यक्ति को दूसरों की मदद करने की प्रेरणा दी जाती है, और यहां का जीवन पूरी तरह से अहिंसा और आत्मसंयम पर आधारित है। जैन लोग अपनी जीवनशैली में अत्यधिक संयमित होते हैं और दूसरों से समानता की उम्मीद रखते हैं। उनका विश्वास है कि अपने कर्मों और विचारों से ही हम अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं। यही कारण है कि जैन समुदाय का जीवन बेहद साधारण, अहिंसक और प्रकृति के प्रति आस्था से भरा होता है।

पद यात्रा का महत्व

पद यात्रा का जैन धर्म में अत्यधिक महत्व है, क्योंकि यह न केवल शारीरिक तपस्या होती है, बल्कि आत्मिक उन्नति और समर्पण का भी प्रतीक है। पद यात्रा में व्यक्ति अपने आत्मा के शुद्धिकरण के लिए कठिन मार्ग पर चलने का प्रयास करता है, जिससे उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति में संतुलन स्थापित होता है। यह यात्रा श्रद्धा, त्याग, और तपस्या का एक तरीका मानी जाती है, जिसमें व्यक्ति अपने सांसारिक मोह-माया से दूर होकर, केवल भगवान और धर्म के प्रति अपनी आस्था को मजबूत करता है। पद यात्रा के दौरान, भक्तों को एकाग्रता, धैर्य और संयम की प्राप्ति होती है, जो उनके जीवन में शांति और संतोष का कारण बनता है।

जैन साधु इस पद यात्रा के एक अहम हिस्सा होते हैं। जैन साधु वे होते हैं, जो अपने जीवन में पूर्णत: अहिंसा, संयम और त्याग का पालन करते हुए बिना किसी भौतिक वस्तु के रहते हैं। वे अपनी साधना और तपस्या में पूरी तरह समर्पित रहते हैं और जीवन के हर पल में धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं। इन साधुओं के द्वारा किया गया तप और पद यात्रा, जैन समाज के अनुयायियों के लिए आदर्श होते हैं। जैन साधु अपनी साधना और पद यात्रा के माध्यम से आत्मनिर्भरता, पवित्रता और उच्चतम आत्मा के स्तर तक पहुँचने का प्रयास करते हैं। इनकी तपस्या और यात्रा, जैन धर्म के अनुयायियों को निरंतर धर्म और अहिंसा की ओर प्रेरित करती है।

Most Popular Pilgrimage

Shatrunjayagiri, located in the southern part of the region known as Sorath (Saurashtra-Surashtra) in the western state of Gujarat, India, is at the top of the list of Jain pilgrimage sites.

Girnar mountain is located 5 kilometers east of Junagadh city (southwest of Ahmedabad). At an altitude of 1118 meters above sea level, this fort receives an average annual rainfall of 775 millimeters. The minimum temperature of Girnar is a minimum of 16 degrees Celsius and a maximum of 28 degrees Celsius during December to February.

The Ranakpur pilgrimage site, adorned with exquisite art and beauty, is located in Rajasthan. Rajasthan is a state in the northwestern part of India. Rajasthan means 'the homeland of kings or Rajputs'.

There is a village named Kumbhariya, 14 miles away from the famous Abu Road station in Rajasthan and 2 kilometers away from the famous pilgrimage site of Ambaji in Gujarat. The 'Arasana' mentioned in ancient inscriptions is the same Kumbhariya. I

Jai jinendra.

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अहिंसा – जैन धर्म में किसी भी जीव को मन, वचन और काया से हानि न पहुँचाने को सर्वोच्च धर्म माना गया है।
सत्य – केवल सत्य बोलना और किसी भी प्रकार के छल-कपट या मिथ्या भाषण से बचना आवश्यक है।
अस्तेय – बिना अनुमति या अधिकार के किसी वस्तु को न लेना और किसी का हक न छीनना।
ब्रह्मचर्य – इंद्रियों पर संयम रखना और अनावश्यक वासनाओं से दूर रहना आत्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है।

निष्कर्ष

जैन धर्म में ये चार सिद्धांत आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनका पालन करने से व्यक्ति न केवल अपने भीतर शांति और संयम विकसित करता है, बल्कि समस्त जीवों के प्रति करुणा और सह-अस्तित्व की भावना को भी मजबूत करता है।